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विकास ही विकल्प

दैहिक विकास अपरिहार्य है, इसके अलावा हर तरह के विकास में सचेतन प्रयास की जरुरत होती है। मैं विकास को दो भाग में विभक्त करता हूँ. पहला है दृश्यगत एवं बाहरी विकास, दूसरा है अदृश्य एवं आंतरिक विकास। हममें से ज्यादातर दृश्यगत विकास के पीछे भागते हैं, जैसे धन, बल, यश और प्रतिष्ठा में वृद्धि। धन इसमें सबसे ऊपर होता है। दो अजनबी व्यक्ति मिलते हैं तो एक-दूसरे का नाम जानने में उनकी उतनी रुचि नहीं होती है जितनी एक-दूसरे का पेशा जानने में होती है। धन अब विकास का मानक बन गया है। इसमें कुछ भी तब तक गलत नहीं है जब तक कि आप धन को नियंत्रित करते हैं, न कि धन आपको नियंत्रित करता हो। धन के विकास के लिए हर किसी को सतत ईमानदार एवं प्रामाणिक कोशिश करते रहना चाहिए, क्योंकि यही अन्य गतिविधियों और शौक के लिए ईंधन का काम करता है।

दूसरी तरह का विकास उतना दृश्यगत नहीं होता है, जैसे मजबूत सम्बंध, ज्ञान अभिवृद्धि, आध्यात्मिक गहराई एवं समझदारी आदि। हर किसी को इनके अभिवर्धन का सतत प्रयास करना चाहिए। इस तरह का विकास लम्बे समय तक टिकता है, आपकी मृत्यु के उपरांत तक। यदि आपने विकास के लिए प्रयास करना छोड़ दिया है तो आप सिर्फ जीते हैं सचमुच में जिन्दा नहीं रहते।

विकास केन्द्रित जीवन के पाँच उपाय
१. विकास प्राकृतिक सिद्धांत है. यह विकल्प नहीं है, अनिवार्यता है।
२. अपने विकास के क्षेत्र का चयन सजगता से करें क्योंकि इसका आपके जीवन पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा।
३. दृष्टि स्थिर करें, रणनीति का चयन करें और तदानुरुप कार्य करें।
४. धैर्य रखें, कई बार आपके प्रयासों के प्रतिफलन में कुछ ज्यादा वक़्त लग सकता है।
५. विकास के राह में असफलताएं सीख देती हैं।

Hemant Lodha

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