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न्यूनतम हों अनुभूतिजन्य मतभेद

मेरा दृढ विश्वास है कि सम्बंधों में निन्याबे प्रतिशत समस्याएं अनुभूतिजन्य मतभेद के चलते होती हैं। मुझे वह उपाख्यान याद आ रहा है कि एक जंगल में जब कुछ नेत्रहीनों ने पहली बार हाथी को छुआ था। जिसने जिस अंग को छुआ उसने अपने-अपने तरीके से हाथी का वर्णन किया। प्रत्येक व्यक्ति ने अपने पूर्व कर्म, परवरिश, शिक्षा और अनुभव के आधार भिन्न-भिन्न चश्मे पहन रखे हैं। परिस्थिति का सामना करते ही व्यक्ति अपने नजरिए से लोगों के बारे में राय बनाने लगता है जो दूसरों की राय से कुछ भिन्न हो सकती है या फिर फिर पूरी तरह विपरीत भी. मैंने ऐसे कई मामले देखे हैं जहाँ आपको लगता है कि आप किसी व्यक्ति की मदद कर रहे हैं जबकि वह सोचता है कि आप उसे क्षति पहुँचा रहे हैं।

अनुभूतिजन्य मतभेद होने लाजमी है। जरुरत इस बात कि है कि इन्हें न्यूनतम स्तर पर ले आया जाए जिससे दो जन के बीच का सम्बंध सुदृढ़ हो। कई बार यह जरुरी भी हो जाता है कि अपने व्यक्तित्व और कार्यशैली के लिहाज से विभिन्न लोगों के दिमाग में अलग-अलग अनुभूतियाँ बनायी जाएं।

अनुभूतिजन्य मतभेद को कमतर करने के पाँच उपाय
1.       संवाद में पारदर्शिता एवं स्पष्टता बरतें।
2.       अनुमान न लगाएं।
3.       दूसरों के नजरिए से भी हालात समझने की कोशिश करें।
4.       अनुभूतिजन्य मतभेदों को ख़ारिज करना न जरुरी है और न ही इसकी जरुरत होती है।
5.       इस पर आपका नियंत्रण नहीं कि दूसरे आपके बारे में क्या सोचते हैं लेकिन यह आपके वश में है कि आप दूसरों को अपने बारे में क्या सोचने देते हैं।

Hemant Lodha

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