कुछ धर्मों के सारतत्त्वों पर गौर करें; जैनधर्म का जोर अहिंसा पर है, बौद्धधर्म का करुणा पर, ईसाई धर्म सेवा या सहायता पर बल देता है, इस्लाम भाईचारे पर तवज्जो देता है और हिंदुत्व आराधना पर। मैं मानता हूँ कि यदि प्रेम न हो तो इनमें से कुछ भी संभव नहीं। प्रेम प्रत्येक और सभी धर्म का सारतत्त्व है। नास्तिक ईश्वर की सत्ता को नकार सकता है लेकिन प्रेम की सर्वोच्चता से इंकार नहीं कर सकता।
किसी भी तरह की अपेक्षा के बिना एक और प्रत्येक से प्रेम ही आध्यात्मिकता का सात्विक स्वरुप है। अहंकार से मुक्त हुए बिना प्रेम करना असंभव है। लोभ से रिक्त हुए बिना प्रेम करना असंभव है। क्रोध की उपस्थिति में प्रेम लुप्त हो जाता है। जहाँ प्रेम है वहां घृणा के लिए जगह नहीं है। यदि आप प्रेम करेंगे तो आप किसी को आहत नहीं करेंगे। अपने परिवार और मित्रों से प्रेम करना आसान है किंतु अपरिचितों, पशु-पक्षियों और प्रकृति से प्रेम ही प्रेम का सर्वोच्च स्वरुप है। जब सबके लिए हमारे भीतर समानता की भावना विकसित होती है तभी यह संभव हो पाता है।
प्रेम को सर्व-व्यापी बनाने के पाँच उपाय
1. प्रेम शर्तरहित होता है, प्रेम और शर्त में से कोई एक ही अस्तित्व में रह सकता है।
2. बाह्य रुप-सज्जा की बजाय भीतरी सौन्दर्य को देखना चाहिए।
3. पूर्वाग्रहित विचार एवं अनुमान का संवहन न करें।
4. मेरी निजी राय में जहाँ से सोच-विचार ख़त्म होता है, वहीं से प्रेम शुरु होता है.
5. प्रेम में किसी भी तरह की उम्मीद नहीं करनी चाहिए, सबकुछ स्वीकार करना चाहिए.