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भाग्य व्यक्तिवादी है

हमारा दो भाई और दो बहनों का परिवार है और हम चारों का भाग्य और जीवन एकदूसरे से जुदा है। मैं कोई नयी बात नहीं कह रहा हूँ। सभी सहोदरों की यही कहानी है। मातापिता अपनी सभी संतानों को भोजन, कपड़े, संस्कार, शिक्षा के अवसर देने और लालनपालन में हर प्रकार से समानता बरतते हैं लेकिन सभी सहोदरों का जीवन बालपन से अलगअलग दिशा में अग्रसर होने लगता है।  इसीलिए कहा जाता है कि भाग्य व्यक्तिवादी होता है।  हर किसी को निजी सुखदुःख से गुजरना ही होताहै।

सहोदरों की बात छोड़िए, पतिपत्नी जो एक ही छत के नीचे, एक ही तरह की सुविधाएं भोगते हैं, धन को समान रुप से नियंत्रित करते हैं, दोनों की संतान एकसी होती है, फिर भी उनके सुखदुःख एकदूसरे से जुदा होते हैं। हम सभी शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एवं आध्यात्मिक स्तर पर एकदूसरे से भिन्न हैं। हम सभी के पास जीवन के प्रति अपनेअपने ख्याल हैं। हम सभी एक ही तरह की परिस्थितियों में होते हुए भी भिन्नभिन्न कारणों से प्रसन्न या आहत हो सकते हैं। भाग्य हमारे पूर्वजन्म का फल है।

भाग्य को समझने के पाँच उपाय

1. क्रिया आपके हाथ में है पर आपके साथ जो होता है वह आपके भाग्य का हिस्सा है।

2. आपके साथ जो हो रहा है भले ही उस पर आपका नियंत्रण न हो लेकिन होनी पर की जाने वाली हर प्रतिक्रिया पर हमारा ही नियंत्रण होता है।

3. मेरी निजी राय भाग्य के बारे में यह है कि भाग्य पर यकीन तभी पूरा होता है जब हम पिछले और अगले जन्म के बारे में भी यकीन करे।ऐसा करना ज्यादा सार्थक होगा।

4. दूसरों के प्रारब्ध से ईर्ष्या न करें, इससे सिर्फ दुःख ही होगा।

5. भाग्य को तर्क की कसौटी पर नहीं समझाया जा सकता।तर्क के जरिए भाग्य को समझना सिर्फ समय बरबाद करना है।

Hemant Lodha

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