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अति है विष समान

मध्य मार्ग पर बने रहे, अति को विष ही मान।
समता की हो भावना, जग में हो सम्मान॥

परीक्षा में शत-प्रतिशत अंक पाने की बात छोड़ दी जाए तो अति अन्य मामले में घातक ही साबित होती है. जैसे भोजन में सभी घटक संतुलित मात्रा में हो तभी वह स्वादिष्ट लगता है, उसी तरह जीवन में सबकुछ संतुलित होना चाहिए. हालाँकि लोग सोचते हैं कि अच्छी चीजें जैसे प्रेम, पैसे और शक्ति जितनी ज्यादा उनके पास हो उतना अच्छा, लेकिन पैसे और शक्ति की ज्यादती बुराइयाँ भी लाती है यदि इन्हें बुद्धिमानी से खर्च करने का शऊर न हो व्यक्ति के पास. अक्सर देखा जाता है कि परिवार की नयी पीढ़ी यदि जन्म से ही शक्ति और सुविधा के अतिरेक में परवरिश पाती है तो बिगड़ जाती है.

कई बार जरुरत से ज्यादा प्रेम करना या पाना भी विषैला साबित होता है. एक बच्चा यदि प्रेम और अनुशासन के संतुलन से महरुम रहता है तो उसके व्यक्तित्व में सफलता के गुण विकसित नहीं हो पाते. प्रकृति भी हमें सिखाती है कि अतिरेक से जीवन का अस्तित्व समाप्त हो जाता है. उदाहरण के लिए उत्तरी या दक्षिणी ध्रुव में या रेगिस्तानों में जीवन की संभावना बहुत कम होती है. हर किसी को जीवन में संतुलन बनाने का प्रयास करना चाहिए. गौतम बुद्ध का मध्यमार्ग संभवतः हमें जीवन में संतुलन साधने की ही शिक्षा देता है और यह सबक भी कि कैसे हम अति से खुद को सदैव बचाएं.

 

माध्यम मार्ग पर बने रहने के पाँच उपाय

१.            वस्तुओं से वीतराग का मिजाज़ विकसित करें.

२.            सम्बंधो में अपेक्षाएं घटाएं.

३.            देने की वृति विकसित करें.

४.            अहंकार मुक्त बनें या अपने अहं का प्रभावी प्रबंधन करें.

५.            अच्छी चीजों की बहुतायत हो तो अधिक विनम्र और सौजन्यशील बनें.

Hemant Lodha

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