महिमा हो संसार में, थोड़ा ज़्यादा काम।
पार करे उम्मीद को, जग में होगा नाम॥
यदि आप साधारण में ‘अ’ जोड़ देते हैं तो आप अ-साधारण हो जाते हैं। अपने विद्यार्थियों से मैं यह सवाल अक्सर पूछा करता हूँ कि जब आप मुंबई पहुँचते हैं और हवाईअड्डे से टैक्सी सेवा का इस्तेमाल करते हुए नरीमन पॉइंट जाते हैं, जिसमें आपको घंटे भर का वक़्त लग जाता है तो उस दौरान आप टैक्सी चालक से क्या उम्मीद करते हैं? इस सवाल के जवाब में ज्यादातर विद्यार्थी कहते हैं कि उन्हें उससे जल्दी पहुँचने वाले रास्ता पकड़ने, सुरक्षित वाहन चलाने, मधुर व्यवहार करने आदि की उम्मीद रहती है। अच्छा यदि उस टैक्सी चालक ने आपको अपने गंतव्य के रास्ते में अख़बार पढ़ने के लिए दिया या पानी की बोतल दी, तो आप कैसा महसूस करेंगे? हो सकता है कि जब आप टैक्सी से उतरने लगेंगे तो किराए के साथ कुछ अतिरिक्त पैसे उस टैक्सी चालक के हाथ में बख्शीस स्वरुप रख देंगे। यह उसकी अतिरिक्त सेवाओं का प्रतिफल होगा जो आपने उस टैक्सी चालक से प्राप्त की है।
इसी फलसफे को आप अपनी जिंदगी की हरेक भूमिका पर लागू कर देखिए। जितनी आपसे उम्मीद की जा रही उससे जरा बढ़कर देने पर आप असाधारण हो जाते हैं। असाधारण होने के लिए आपको अक्सर कुछ खर्च नहीं करना होता है, बस अनूठे तरीके से सोचने की जरुरत होती है। आप आज से ही इस फलसफे पर अमल करें और इसके सकारात्मक फर्क को तुरंत महसूस करें। उम्मीदों से जरा बढ़कर देखिए, हर कोई आपकी प्रशंसा करने लगेगा।
उम्मीदों से आगे बढ़ने के पांच उपाय
१. अपनी भूमिका के लिहाज से दूसरों द्वारा की जा सकने वाली उम्मीदों की सूची बनाइए।
२. रचनात्मक तौर पर सोचिए कि दूसरों की उम्मीद से ज्यादा आप उन्हें क्या दे सकते हैं।
३. आप जो भी करते हैं उसमें जरा ज्यादा देने की आदत बना लीजिए।
४. कुछ पाने की मंशा से नहीं बल्कि एकदम स्वाभाविक होकर ज्यादा दीजिए।
५. उम्मीदों से आगे बढ़ने को काम नहीं अपना फर्ज मानिए।