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भूल को फूल की तरह स्वीकारे।

नयी सोच, नया विचार, नया तरीक़ा, नया पदार्थ, नयी दिशा अवश्यम्भावी है अगर हमें ग़लतियों को स्वीकार करने की क्षमता नहीं हैं। अभीभावक, अध्यापक, अधिकारी, नेता आदि लोगों को आदत हो जाती है कि वो हर बात में अपने मातहत लोगों कि ग़लतियाँ ढुंढते रहते हैं जिस के कारण वो उन्हे या तो मूर्ख की श्रेणी में खड़ा कर देते है या वो फिर विद्रोही बन जाते हैं।

ग़लतियों को स्वीकार करने का यह मतलब क़तई नहीं है कि आप मूर्खता पूर्ण या एक ही भूल का बार बार पुनरावृत्ति को स्वीकारे। अगर आपने आज तक कोई ग़लती नहीं की है तो आप ईश्वर की श्रेणी में आजाएँगे लेकिन आप एक ग़लती को बार बार करेंगे तो आप मूर्ख की श्रेणी में गिने जाएँगे। कुछ लोग ऐसे होते है जो ना तो अपने जूनियर को ओर न ही अपने आप को ग़लती करने की इजाज़त देते है एेसे लोग हमेशा दुखी रहते है। अपने आप को भी ग़लती करने की इजाज़त दीजिये। गलतियें सफलता की सीढ़ी है। महत्वपूर्ण यह है कि भूल मालूम हो जाने पर एक दूसरे पर दोषारोपण से बचे।

ग़लतियाँ होने पर उसके कारणों कि जाँच करते रहेंगे तो ग़लतियों कि पुनरावृत्ति रुक जाती हैं। ग़लतियाँ होने के मुख्य कारण होते है जानकारी एवं ज्ञान की कमी तथा व्यवस्था की कमज़ोरी। हम अगर ग़लतियों की गहराई से जाँच कर ले तो पुनरावृत्ति ना होने के नायाब तरीके ढूँढ सकते है।

ग़लतियाँ होने पर ५ बातों का ध्यान रखे।
१) ग़लतियों के पीछे कारण व नियत जानने कि कौशिश करे।
२) ग़लतियों से भविष्य के लिये पाठ सीखे।
३) दोषारोपण से बचे।
४) रचनात्मकता को प्रोत्साहित करे उसके लिये चाहे ग़लतियों को नज़रअंदाज़ भी करना पड़े।
५) ग़लतियाँ व इसके कारणों को भविष्य के संदर्भ के लिये लिखित में रख ले।

दोहा by अविनाश बागड़े
नहीं दुबारा हों कभी , बाँध लीजिये गाँठ।
कहती हैं ये गलतियाँ , सीखें हमसे पाठ।।

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Hemant Lodha

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