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दोहे लेखक हेमन्त लोढ़ा Dohe by Hemant Lodha

दोहे लेखक हेमन्त लोढ़ा
आसक्ति का भाव सदा, सकल दुखों का मूल
चाहत हो जो मुक्ति की, बदलो इसे समूल॥३१०॥

भाषा हिंदी है गहरी, हैं शब्दों का विज्ञान।
संस्कृत की बहन अनुज, छुपा है गहरा ज्ञान॥३०९॥

होंठों पर मीठास हो, मन में हो ईमान
जग जन सब वश में रहे, मिलता है सम्मान॥३०८॥

अपना धर्म निभाइयें, सकल गर्व के साथ।
प्रेम कर्म का मेल हो, मिले प्रभु का हाथ॥३०७॥

ख़ुशियाँ बाँटे से बढ़े, दुख बाँटे कम होय।
फल मिले इस जीवन में, जैसे बीजें बोय॥३०६॥

क्षय नहीं होता कभी, लो अक्षर का ज्ञान।
पढ़ लिख कर बढ़ती समझ, जीवन की पहचान॥३०५॥

जूठा खाना छोड़ना, भोजन का अपमान।
थाली धोकर पीजिये, ईश्वर का सम्मान॥३०४॥

उद्यम कर के, सिद्धि मिले, मात्र चाह ना पाय।
मृग जावे ना सिहंमुख, कर्म करे फल भाय॥३०३॥

सुख चाहे तो सुख मिले, दुख चाहे संताप।
जैसी जिसकी कामना, ईश्वर का प्रताप॥३०२॥

न चोरी न राजा हरे, बँटे न, लगे न भार।
ख़र्च करे बढ़ती रहे, विद्या-धन अपरंपार॥३०१॥

गेंद गिरे जो हाथ से, उठती ऊपर ओर।
जीवन में जब रात हो, समझो होगी भोर॥३००॥

माँगे से मिले नहीं, बढ़ती ना है शान।
काम अनोखा कीजिये, वही बने पहचान॥२९९॥

महापुरुष का साथ हो, जीवन में हो आस।
कमल पत्र पे बूँद ज्यों, मोती का आभास॥२९८॥

आँखें चमके प्यार से, होंठों पे मुस्कान।
जीवन में ख़ुशियाँ रहे, रिश्तों में हो शान ॥H297॥

देखूँ सोचूँ व समझू, मंथन हो आधार।
चिंतन चर्चा भी करूँ, हो कलमबद्ध विचार H296

जल तो बहती धार है, हो स्वच्छ अपने आप।
दूषित करना छोड़ दे, नही लगेगा पाप H295

भाँति भाँति के फूल है, भाँति भाँति कि पत्तियाँ।
योनि चौरासी लक्ष है, भिन्न मानव वृत्तियाँ H294

कृतज्ञता की भावना, हरपल रखिये ध्यान।
धन्यवाद करते रहे, बढ़ता है सम्मान H293

रिश्तों कि क्याँ पूछियें, हैं दिल की वो जान।
उनके बिन मिलती नही, मानव की पहचान H292

जानता है पेड़ सदा, फल ना मेरा पान।
मगर ताज़गी के लिये, देता अपनी जान H291
मालूम है पतंग को , कटना है हर हाल।
छूना चाहे आसमाँ, डोरी संग है चाल H290
जानती हर बूँद है, सागर मेरा धाम।
कोशिश वो करती रहे, आवे जग के काम H289

परेशान है आमजन, फिर भी है तैयार।
कोइ ना बच पाएगा, इंतज़ार में सार H288

काला कभी ना राखियें, धन या तन मन पाथ।
दुख देगा इस लोक में, परलोक रहे न साथ H287

खान मिले या ना मिले, या ना करे बखान।
जीना ऐसा सीख लो, देश पे हो क़ुर्बान H286
गुल होती कड़वाहटे, हो जाती जब प्रीत।
भूलो भूलें लोक की, बन जाओ मनमीत H285

अस्त हो या उदय रहे, कौन सका पहचान,
जनक हमारी धरती के, अलग-अलग पहचान H284
हाथी सूअर से लड़े, हाथी का अपमान।
कूटनीति तो यह कहे, चल तू सीना तान H283

मेडल मारे कोख में, हमने कई हज़ार ।
मित्र बचालों बेटियाँ, साक्षी सिंधु झंकार H282

इश्क़ हो जब देह से, जाए देह के साथ
मन से मन का इश्क़ रखे सदा हाथ मे हाथ H281

हो सफल हर काम में, मन में हो जब जोश।
बल के साथ दबाव में, मिट जाते है होश H280

पूजा ऐसी मत करो, भय व लोभ हो साथ।
परहित ही मन मे रहे, जोड़ प्रभु को हाथ H279

रहे खड़े तूफ़ान में, टूटोगे तुम यार।
उड़ जाओगे साथ जो, घट जाएगा भार H278

सपने सच होंगे तभी, पाएँगे वो जान।
भय को डालो क़ब्र में, क़दम बढ़े आसान H277

तन मन को चंगा करे, नियमित करना योग
मित्र योग का जो बने, कभी न लागे रोग H276

मौसम मे है दम नही, बदले मेरे हाल।
मुस्काने चिपकी रहे, काल चले हर चाल H275

सत्य नग्न ही है भला, मत करिये श्रृंगार।
जोड़ घटाना सत्य का , यानी भ्रष्टाचार H274

निर्णायक क्यूँ बनते हो, हो ना तुम भगवान।
जो जैसा अपना बने, सब में एक सी जान H273

भाषा शब्द अलग अलग, भाव भंगिमा एक।
सुख दुख लगता एक सा, जग में जीव अनेक H272

क्रोध अगर जो मित्र हो, शत्रु का क्या काम।
रिश्ते हो या काम हो, होता काम तमाम H271

महत्त्व नहीं इस बात का, क्या कहता तू बात।
कैसे और कहाँ कहीं, तय करती है जात H270

मौक़ा पढ़ने का मिला,ले ली बाज़ी जीत।
मेहनतकश है लड़कियाँ, बना पुस्तकें मीत H269

डिग्री जन पहचान है, सबकुछ उसे न मान।
ज्ञान सूर्य समान है, कई जन्मों की शान H268

चार वर्ण का मालिक में, रखता हरेक स्वभाव।
परम ज्ञान मुझ में रहे,नभ् चमकूँ हर गाँव H267

क्षत्रिय का मैं वीर्य लिये, वैश्य रूप धनवान।
सेवारत मैं शूद्र सा, सूरज मुझको मान H266

धन, बल, बुद्धि बड़े जरुरी, जीना हो जो शान।
साधन जीव सरल करे, भगवन इन्हें न मान H265

साठ बरस का मै हुआ, पाठ सीख के साठ।
सोचा तुम से बाँट लू, जीवन की ये गांठ H264

रोगरहित काया रहे, पहली है यह बात।
खेलकूद करते रहो, योग करो दिन रात H263

भोजन ज्यादा मत करो, ख़ाली हो कुछ् पेट।
रोज़ा हो उपवास हो, शुद्ध वस्तु हो भेंट H262

जल सेवन नियमित रहे, दिन में बीस गिलास।
आगत को जल दीजिये,रहे न बाकी प्यास H261

धन, बल हो या नाम हो, जीवन का यह सार ।
खुशियाँ जीवन में मिले, बाकी सब बेकार H260

सुखदुख तो आते रहे, मत घबराना यार।
आशा कभी न छोड़ना, होती नैय्या पार H259

बीत गया बस में नहीं, नहीं काल का भान।
जीना अब में सीखलो, निकले कब ये जान H258

सदुपयोगी है समय, क़ीमत है अनमोल।
सबके पास समान ये, करिये इसका मोल H257

लोभ लालच करो नहीं, करो क्रोध का त्याग
ये सब दुश्मन है बड़े, घर घर लगती आग H256

मित्र बने दुश्मन घटे, आये जो मुस्कान।
हंस कर सबसे बोलिये, रखिये सबका मान H255

छोर न सृष्टि का मिले, क्या अपना आकार।
अहंकार किस बात का ,चलो अहं को मार H254

प्रेम जीव का मूल है, माँ से जानी बात।
प्यार करो हर जीव को, ख़ुशी रहो दिन रात H253

नही उतरता ऋण कभी, सेवा करो हज़ार।
प्रभु समझ माँ बाप की, भक्ति करें अपार H252

सदा समर्पण भाव रहे परिणय माँगे त्याग।
समझो तुम, बदलो नहीं, मीठा जीवन राग H251

भाई-बहन का स्नेह ये , उस का आशीर्वाद।
लाभ न हानि देखिये, करे न वाद विवाद H250

जीवन में शिक्षा सदा,बच्चों के संस्कार।
अनुशासन व प्यार का, रहे संतुलन यार H249

जो बच्चों को स्नेह दिया, नही जताओ यार।
अाशा देगी यातना, मिट जाएगा प्यार H248

जीवन की पूंजी बड़ी, मित्र रहे जो ख़ास।
साथी सच्चे बने तभी, अहंकार जब नाश H247

ठोस रिश्ते माँगते, आपस का विश्वास।
छोटी छोटी बात को, कभी न डालें घास H246

धर्म अपना पहचानकर, करो लक्ष्य निर्माण।
पानी हो जो सफलता, झोंको अपने प्राण H245

कर्म सदा करते रहो, मिल जाएेगा ठाठ ।।
पापा जाते काम पे, यही फ़र्ज़ का पाठ H244

कर्म है अपने हाथ में, फल के देव अनेक
फल मिले उपयोग करो, मालिक सबका एक H243

जीवन की इस दौड़ में, ग्राहक सुबहो शाम
अधिक दिया जो आस से, बन जाऐगा काम H242

जीवन की उपलब्धियाँ , घर भी एक मक़ाम।
रखिये अंतिम साँस तक, बस अपने ही नाम H241

इच्छाएं अपनी रखें , लिखकर अपने पास।
मुहर लगे कानून की , पारदर्शिता खास H240

रोज़ कर तू प्रार्थना, होती शक्तीवान।
अपना लालच छोड़ के, ओरों पे दे ध्यान H239

विष अमृत का भाग ही, मिले साथ ही साथ।
दोनों का सम्मान करो, लग जाये जब हाथ H238

मित्र मन तारण करें, ज्यों जल तारे नाव।
कलयुग में दुर्लभ मिले, मिले न छोड़ो पाव H237

अणु हो या परमाणु हो, सब में मेरा वास।
मुझ में है बसते सभी, मैं ही अणु प्रवास H236

पैसा हो या हो समय, देते रहना दान।
जीवन में बहते रहे , ये इनकी पहचान H235

जैसे को तैसा मिले, बैर रहे या प्रीत।
जो बोये वो ही कटे, जीवन की यह रीत H234

बिन माँगे देना नहीं, नमक नसीहत कोय।
लोग लगाये ज़ख़्म पे, साथ ब्याज के तोय H233

हार पे हार डाल के, अतिथि का दो प्यार।
ज़्यादा दिन ठहरे नहीं, जीत बने दीवार H232

पशु भूखा रहता नहीं, पैसा रखे न पास।
पेट जन का भरे नहीं, भरे तिजोरी ख़ास H231

राजा हो या रंक हो, जाना मोक्षधाम।
समझे अग्नि समान है, जीवन की हो शाम H230

बदली की क्षमता नहीं, बाँधे सूरज डोर।
दुख के बादल क्या करे, सुख है चारों ओर H229

संख्या का दर्शन दिया, शून्य की पहचान
नाप लिया ब्रह्माण्ड को, भारत सदा महान H228
सब धर्मों का वास जहाँ, धर्म निर्पेक्ष तू जान।
प्रेम धागे से बँधा, भारत सदा महान H227
जहां ज्ञान गंगा बहे, विश्व गुरु पहचान।
वेद और गीता जहाँ, भारत सदा महान H226
बुद्धि तक जो न रुके, करें आत्म पहचान।
होड़ न पश्चिम की करे ,भारत सदा महान H225
कितने आये चल दिये, है सबका सम्मान।
शक्ति हमारी प्रेम है, भारत सदा महान H224

तम को जो समझा नही,ज्योति समझ ना पाय।
समझे जो अज्ञात को,ज्ञान समझ में आय H223

शतरंज के इस खेल में, पैदल हो या ताज।
अंतकाल जब आय तो, पेटी एक इलाज H222

प्रेम रूप कण कण बसे, प्रिय रहे हर पात।
बहे प्यार की गंग में,मेरे घर की बात H221
चलती चर्चा ज्ञान की, नही धरम की रात।
सभी समस्या हल करे, मेरे घर की बात H220
करम करें निष्काम तो, बन जाती है बात
छोड़े ना कर्तव्य को, मेरे घर की बात H219

बाहर का कचरा मिटे, झाड़ू फेरे कोय।
शुद्धिकरण मन बुद्धि का, स्वच्छ ये भारत होय H218

मिले नया व्यक्ति जहाँ, गुरु रुप तू मान।
चाह सीखने की अगर, व्यक्ति हरेक महान H217

पीपल हो या नीम हो, रखना सब का मान।
माँ अगर नाराज़ हुई, नही बचेगी जान H216

सन्त सुरक्षा मांगते! युग कैसा यह आय।
जो भय को तज ना सके, सन्त नही कहलाय H215

अच्छे दिन का लक्ष्य है, काम नहीं आसान।
रोक बुरे दिन को दिया, प्रथम कदम तू मान H214

ज्ञान अनंत है लोक में, पुस्तक नहीं समाय।
बाइबिल रहे कुरान या, गीता बाँध न पाय H213

बुक अड्डा मंदिर बना, बहती गंगा ज्ञान।
इंतज़ार इसका रहे, हम बनते बुद्धिमान H212

सदा अहं को सींचते, बढ़ जाता आकार।
खेती करिये ज्ञान की, अहंकार बेकार H211

नारी महिमा भूल गये, पग पग पे अपमान।
लक्ष्मी दुर्गा सरस्वती, रूठे यह सब जान H210

सो क़दम पे नीम है, चार क़दम पे नार।
दोनों ही कड़वे सही, नैय्या करते पार H209

आशा उत्तम की रखो, जब भी करना काम।
सर्वनाश के खातिर भी, रखना मन को थाम H208
Expect the best, prepare for worst.

चलते रहना आवश्यक ,रखनी है जो आस।
बैठें तो बस! कुचल दें, पथ हो चाहे ख़ास H207

बचपन पे हैं वश नहीं, छूट हाथ से जाय।
छीन नही मुझसे सके, मुझे बचपना भाय H206

जन्म न बैरी लेत कभी, हम करते निर्माण।
कभी ना शत्रु बनाइये, संकट घिरते प्राण H205

प्रतिभा छुपती नहीं,लगता सतत प्रयास।
महिमा सारा जग करे, आप हमारे ख़ास H204
For Avinashji

पानी मित्र बचाइये, पानी सबकी जान।
पानी उतरे जीव से, मिट जाए पहचान H203

स्व को अर्जुन जो समझे, केशव प्रकृति समान।
गीता को तब जो पढ़े, गूढ़ अर्थ तू जान H202

निर्देशन है बड़ा जरुरी, पथ करना हो पार।
ऊँचा उठना हो जिसे, नक़्शे में ना सारH201

सागर भाँति मन अपना, लहरों सा आवेश।
करम करोगे मूढ से, शून्य रहेगा शेष H200

पागल और फ़क़ीर ये, दोनों एक समान।
साधक बुद्धि से परे, पागल बुझे न ज्ञानH199

जो वश में रह ना सके, जीभ ऐसी कटार।
मन बुद्धि से संयम करे, हो न नाक पे वारH198

शक्तिशाली प्रार्थना, हाथ जोड़ कर रोज़।
दूजे के लिए गर करे, तेरा उतरे बोझ H197

विचारविनिमय सब करो, रोको वाद विवाद।
हर हल चर्चा से निकले, तर्क बिगाड़े स्वाद H196

निश्चय में दृढ़ता रखे, करते सतत प्रयास।
पथ को वो त्यागे नहीं, लक्ष्य न जब तक पास H195

करो नही आलोचना, और न हो आरोप।
असफलता को फल समझ, व्यक्ति को मत सौंप H194
Criticise the performance, not the performer.

साथी एेसे ढूँढ लो, जिसे कर्म से प्यार।
नभ हिले या वसुंधरा, माने कभी न हार H193

फल मीठा है सब्र का, पाऊँ कैसे तात।
वश में करले सोच को, धीरज मिलता आप H192

उत्तम वाणी के लिये, विचार उत्तम होय।
भाग्य उत्तम चाहिये, तो बीज उत्तम बोय H191

मिलती हार जीवन में, वश में ना हो चाप।
रखा नही क़दम सोच के, दुनिया देगी शाप H190

रहे आपका साथ-प्रभा
जाने क्या सोच करके, दिया आपने हाथ।
अब है सिर्फ़ यही तमन्ना, रहे आपका साथ।।
आज भी है लगे नयी, बर्सो पुरानी बात।
सुख से बीती ज़िन्दगी , रहे आपका साथ।।
सुख दुख तो आते रहे, दिया हमेशा साथ।
भविष्य का किसको पता, रहे आपका साथ।।
की उपेक्षा हर समय, अपेक्षा के साथ।
संयम की तुम मूरत हो, रहे आपका साथ।।
पंख लगा सेवा करती, चाहे दिन हो रात।
जान बच्चों में बसती , रहे आपका साथ।।
कर्मी मैं, भाग्य आपका, कुछ तो है ये बात।
एकाकीपन से डरता , रहे आपका साथ H184-189

महावीर बन जाय,
चले अहिंसा मार्ग पे, कभी न जीव सताय।
प्रेम करे हर जीव को, महावीर बन जाय।।
चले सत्य के मार्ग पे, त्यागे सभी कसाय।
मिथ्या ना बोले कभी, महावीर बन जाय।।
चोरी का सोचे नहीं, अस्तेय को अपनाय।
लोभ पराये का नहीं, महावीर बन जाय।।
स्त्री का आदर जो करे, दूजी ना ललचाय।
इन्द्रियां नियंत्रित हो, महावीर बन जाय।।
लालच ईर्ष्या से बचे, सदा सीमित हो आय।
दान पुण्य करता रहे, महावीर बन जाय।।
फल की चिंता हो नहीं, कभी कर्म ना भाय।
ज्ञान कर्म में लगे रहे, महावीर बन जाय।।
पत्थर मारो पेड़ को, देता फल टपकाय।
जो समझे इस बात को, महावीर बन जाय H177-183

For TAS
साथ देखा एक सपना, शुरू किया व्यापार।
चलते चलते बन गये, सुख दुख भागीदार H
मिलते अनेक सफ़र में, तुम हो अद्भुत यार।
सरल सच्चे इंसान हो, बना रहे यह प्यार H
रिश्ते कई रब ने दिये, तुम हो अनुपम यार।
जब चाहे भाई बनो, कभी पुत्र का प्यार H
वादा करता मैं यही, फ़िक्र ना करना यार।
जब तक मेरी साँस चले, रहेगा मेरा प्यार H
चाहू अब तो मैं यही, ईश्वर से एक बात।
अर्थी जब मेरी उठे, हो तेरा एक हाथ H172-176

Romantic Poem in Doha Format
आहट तेरी कान में, लगती है झंकार।
शब्द निकले जो होंठ से, मन को मिले क़रार।।
तरसे आँखें दर्शन को, अँखियाँ देखे बाट।
तुम जब आओ सामने, दूजे मन को काट।।
ख़ुशबू तेरी पास में, महके फूल गुलाब।
चढ़े नशा इस ज़हन में, हो नशीली शराब।।
मन छूने का है करे, होती जब तू पास।
बाहुपाश में भरूँ तुझे, रह जाऐ ना आस।।
फड़के सारी इन्द्रिया, मचले तेरा ख़याल।
मिलो मुझे हर जन्म में, बिछड़ो किसी न काल H167-171

रागद्वेष का हो हवन, पनपे दिल में प्यार,
रंग संग खुशियाँ मिले , होली का त्यौहार H166

त्यागो मत उत्साह को, मिले कभी जो हार
ना हीं जोश में उछलों, ताली मिले हज़ार H165

उचित दिशा आशा उचित, जागे मन के दीप।
अपना आज न खोइये, आस ख़ुशी की सीप H164

परम अानन्द तब मिले-
अन्तर जब मिट जाय
अपना दूजा कौन है, भान नही हो पाय।
परम अानन्द तब मिले, अन्तर जब मिट जाय।।
सुख दुख क्या समझु नही, दोनों एक उपाय।
परम अानन्द तब मिले, अन्तर जब मिट जाय।।
राग द्वेष बचते नहीं, समचित्त मन हो जाय।
परम अानन्द तब मिले, अन्तर जब मिट जाय।।
मीठा तीखा सम लगे, स्वाद एक ही आय।
परम अानन्द तब मिले, अन्तर जब मिट जाय।।
रात रहे या दिन रहे, चन्दा सूरज भाय।
परम अानन्द तब मिले, अन्तर जब मिट जाय।।
राजा हो या रंक मिले, सभी गले लग जाय।
परम अानन्द जब मिले, अन्तर जो मिट जाय।।
चींटी हो या शेर हो, सब में मीत समाय।
परम अानन्द जब मिले, अन्तर जो मिट जाय H157-163

लोग कहे मैं जानता, मैं ना जानू आप।
हम सभी भ्रम में रहे, मिथ्या वार्तालापH156

जो मितभाषी मितव्ययी, बन जाते है मीत।
मितभोगी जब हम बने, समझो हो जगजीत H155

मन हो बुद्धि के वश में , करना तू अपने मन की।
मन वश में हो इंद्रियों के, सुनना मत तब तू मन की H154

माँ, बहना, पत्नी, सखा, चाहे सब सम्मान।
प्रेम उन्हें सादर करे, तभी बढ़ेगा मान H153

सुंदर हो या बदसूरत, ख़ुशबू हो या बास।
नाद शंख, कोई भौंखता, फर्ख पड़े नही ख़ास H152

अतिसुन्दर मुस्कान वही, आएे जब हो हार।
साहस देख मुस्कान का,हार मानती हार H151

दोनों आँखें बंद करो, करलो शिव का ध्यान।
तीजी जब खुल जाएगी, होय आत्म का ज्ञान H150

चलने के पहले हमे, मंज़िल का हो भान।
सोच नही जो लक्ष्य की, होय कर्म अपमान H149
Begin with the END in mind. Stephen Covey.

अंधकार है भरा पड़ा, तल हो या आकाश।
गुरु अविनाशी जब मिले, फैले जगत प्रकाश ॥१४८॥

रखना सच्चे मित्र का, एक अनोखा राग।
निभे तभी यह मित्रता, करें अहं का त्याग H147

चिल्लाओगे क्रोध में, समझेंगे यह लोग।
नही नियंत्रण सोच पे, है इसको यह रोग H146

विश (wish) की खूबी इस तरह,दे अमृत का काम।
व्याप्त कहीं विष हो अगर, करता काम तमाम H145

कड़वे शब्दों का करे, उसी समय उपयोग।
जब भी मीठे शब्द का, धीमा पड़े प्रयोग H144

न छोटा है न ही बड़ा, मेरा कोइ मकान।
तेरे मन की कल्पना, तेरी झूठी शान H143

सम्भव ना करना खड़ा, एक सफल मीनार।
जब तक गारे में नही, असफलता के हार H142

तम को करती दूर ज्यों, नन्ही सी इक ज्योत।
त्यों भय रहता दूर ही, ज्ञान संग जो होत H141

ख़ुशी मिले वो काम में, जग ने मानी हार।
अगर सफलता मिल गई, चमत्कार के पार H140

होते झूठे मीत जस, परछाई आभास।
साथ रहते तब तक ही, जब तक पड़े प्रकाश H139

चारदिवारी में सदा, रखो धर्म को कैद।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख का, रहे न बाहर भेद H138

लक्ष्य बन जाये सपना, क़दम उठे उस ओर।
मंजिल होगी आपकी, करिये कर्म कठोर H137

नही जरूरी नाम हो, करना हो कुछ काम।
करना काम जरुरी है, तभी बनेगा नाम H136

हो कदाचित आप सही, सही आपकी बात।
इसका मतलब यह नहीं, ग़लत ओर की बात H135

नेता अच्छा है वही, करता ऐसे काम।
गुण अनुचर के देख कर, उत्तम देत मक़ाम H134

शब्दों से मत घाव करो, होता कठिन सुधार।
शब्दों कि महिमा बढ़े, जब हो सुन्दर विचार H133

यत्न निरंतर ही करो, छोड़ो नहीं प्रयास।
तजे नहीं जो काम को, पूरी होती आस H132

बहती गंगा प्रेम की, शब्द न हो दरकार।
प्रेम हारता है जहां, शब्द लगे बेकार H131

मिलता जीवन में वही, देखे मन की आँख।
सपनो में हो जान जो, वही देखती आँख H130

जीत नही सम्भव जन की, मन में जब हो हार।
पानी है जो सफलता, पहले मन को तार H129

रिश्तों में जब माँग हो, बन जाता व्यापार।
त्याग समर्पण भाव हो, जीवन नैय्या पार H128

जीत जिनका लक्ष्य है, करते रहते काम
कर्म जिनके वश नहीं, उनका काम तमाम H127

शब्दों का जब अर्थ नही, करे न ज्ञानी व्यर्थ।
शब्दों में जो मितव्ययी, बनता वही समर्थ H126

आयु मेरे हाथ नही, निर्णय ले भगवान।
उत्तम मानव बन सकूँ, बना रहे सम्मान H125

जगत भरोसा ना करे, ना खुद पे विश्वास।
अगर जीतना जगत को, रखो आत्मविश्वास H124

आकांक्षा दुनिया करे, जब तुम से श्रीमान।
खुद को आभारी समझ, जग ने जाना मान H123

लोग अपेक्षा जो करे, स्वयं को समझु धन्य।
लोगों ने समझा मुझे, कर्म के लिये सक्षम H122

‘अच्छा’ जब सम्भव लगे, रोको नही प्रयास।
चाहे फल हो ठीक भी, ‘उत्तम’ की हो आस H121

अमर कोइ होता नहीं, होत जीव की शाम।
करे निष्काम काम तो, सदा रहेगा नाम H120

चोट लिखो जो रेत पे, जल्दी से मिट जाय।
पत्थर पे उपकार गढ़ो, कभी न मिटने पाय H119

वर्ण वर्ग जाति धरम, हो कैसा भी भेद।
प्रेम बसे मन में यदि, कोइ नही है खेद H118

आज के इस कलयुग में, कौन है बुद्धिमान।
ज्ञानार्जन जो कर रहे, खोले आँख व कान H117

काम से जो काम रखे, उसके सब हो काम।
नही काम की कामना, काम रहित हो काम H116

ज्ञान बढ़े ना बोल से, मूल बोल का ज्ञान।
वो ही जन पंडित बने, खुले रखे जो कान H115

जब सह, ईश व अणु मिले, हो सहिष्णु निर्माण।
बाहर से हम अलग है, भीतर एक ही प्राण H114

भय भरोसे योग्य नही, आशा का विश्वास।
पानी है जो सफलता, रख उम्मीदें पास H113

सुख की ज्योत जलाइये, हो ख़ुशियाँ चहु ओर।
सच्ची सेवा है यही, नाचे मन का मोर H112

लोग बगल छूरी रखें, मुँह में रखते राम।
मधुमक्खी से हो सतर्क, डंक शहद का काम H111

दुख सुख तो आते रहे, समझे एेक समान।
रहती ऐसे ही मन में, ख़ुशियाँ सीना तान H110

बिन चरित्र के योग्यता, प्राण विहीन शरीर,
साथ उत्तम है वही, जहाँ सत्य है पीर H109

पत्थर मारा पेड़ को, देता फल टपकाय।
जो समझे इस बात को, बुद्ध वही बन पाय H108

उठे नहीं पहला क़दम, लगे असंभव काम।
शुरु करे अंताक्षरी, लेकर प्रभु का नाम H107

गीत छंद कविता ग़ज़ल, बने, मिले जब मीत।
अद्भुत यह संगम सदा, ज्ञान और संगीत H106

ख़ुशियाँ लाएँ जीवन में, दीपों का त्योहार।
हो आपस में प्रेम भी, दुख का हो संहार H105

शब्दो को जो तोलके, बाहर निकले तात।
जनता समझे लोक में, ज्ञानी उसकी जात H104

व्यक्ति हो या वस्तु हो, है अपना आकार।
जो देखूँ बिन राग के, सब लगे निराकार H103

भीतर ही शैतान है, भीतर है भगवान।
प्रेम करे हम जिसे, वो ही रखे ध्यान H102

मैं अर्जुन, केशव हुँ, मैं कौरव, पाण्डु जान।
गीता, महाभारत हुँ मैं, मैं कर्म फल हुँ मान H101

कैसी है य विडम्बना, मांग रहे विश्वास।
वार तुझे जीवन दिया, तुम हो मेरी आस H100

चिंतन करले सोचले , सब कुछ अपने हाथ।
कर्म आपके आज के , कल को होंगे साथ H99

मन जब भी मन्दिर बने, भटके ना कहीं और।
अन्तर्मन् में झांक ले, ईश्वर ही है ठौर H98

ना ना करके काम में, मत डालो व्यवधान।
मुख पर ताले डाल लो, होता कर्म प्रधान H97

ना जादा ना कम कही, सबके पास समान।
करे समय उपयोग जो, बनता वही महान H96

दुखी नही दुःख कर सके , सुख का भी ना भान।
ऐसे जातक के लिये, नरक स्वर्ग समान H95

दो बातें अपनाइये, दोनों बड़ी महान।
फल की आशा छोड़ के , करे कर्म इंसान H94

दो बातें अपनाइये, दोनों बड़ी महान।
बुरा कभी ना देखना, बुरे को न दो कान H93

दो बातें अपनाइये, दोनों बड़ी महान।
अपना कार्य जान लो, छिड़को सबपे जान H92

दो बातें अपनाइये, दोनों बड़ी महान।
निर्बल को सहयोग दो, बल को दो सम्मान H91

दो बातें अपनाइये, दोनों बड़ी महान।
गुरु बसे हर जीव में, कण कण में भगवान H90

दो बातें अपनाइये, दोनों बड़ी महान।
माता पिता को मान दो, बच्चों को दो ज्ञान H89

दो बातें अपनाइये, दोनों बड़ी महान।
माफ़ी दे दो भूल को, निर्धन को दो दान H88

नुमाइशें गम की करे, होता सदा मजाक।
कुछ को आता है मज़ा , बाक़ी समझे ख़ाक H87

लेकर छाया भाग की, मूढ़मति कहलाय।
अच्छे कर्मों से सदा, भाग्यवान बन जाय H86

किसने समझा भाग को, जटिल हिसाब किताब।
लगे रहो सतकर्म में, देना ‘उसे’ जवाब H85

अगर प्यास हो ज्ञान की, मिले ज्ञान चहुँ ओर।
कविता हो या हो कथा, लेखन करे विभोर H84

रचनात्मक ही कर्म में, मन और बुद्धि होय।
ऐसे यज्ञों का फलित, सचमुच अद्भुत होय H83

समय तभी आराम का, समय नहीं जब पास।
तन मन बुद्धि को मिले, अपना अपना ग्रास H82

बिना रुके चलता रहे , बिना अहं आवाज।
सूरज से कुछ सीख ले, उम्दा जीवन-राज H81

मिट जाती है दुरियाँ , इंसानों के बीच।
शब्दों की ज़रूरत नही, मुस्कानों को सींच H80

जो अपनाना हो नया, त्याग भूत को आज।
पतझड़ के आग़ोश में , सावन का आग़ाज़ H79

सफलता का राज यही , अभी करो शुरुआत।
पग आगे बढ़ते रहे, दिन देखो ना रात H78

वृत्ति से डाक्टर बनी, कवि बनने का जोश।
कहे लोग मुझे आरती, बनना चाहू होश H77

कृषक रोज मरते रहे, अनशन करे जवान।
बापू तेरे देश में, नेता अब हैवान H76

दुःख पहाड़ लगने लगे, पर्वत लगे तनाव।
जल तल पर रखिये उसे, तैरें जैसे नाव H75

शत्रू का आभार करें, अवसर किया प्रदान।
बिन दुश्मन के है नही, कभी जीत की शान H74

घुन जैसे खा जाएंगा, मोह माया व द्वेष।
प्रेम दवाई दो पिला, कुछ न रहेगा शेष H73

पाना जो सम्मान हो, पहल कीजिये आप।
दोगे अपना प्यार तो, फैलेगा परताप H72

निज क्षमता सन्देह से, बढ़े भावना हीन।
सपन सदा साकार हो, रहे काम में लीन H71

तरल रहूँ जल की तरह, अपना लूँ हर पात्र।
धर्म न मैं अपना तजूँ , रहूँ मैं मानव मात्र H70

एकात्म मानववाद ये, मुखर होय हर हाल।
अंत्योदय से ही बढ़े, कहते दीनदयाल H69

रहना हो आनंद से, मन को समझे तात।
अंतर्मन को जान ले, शांति मिले पर्याप्त H68

तन से पत्थर हो भले, कहलाता भगवान।
मन से जो पत्थर बने, बन जाते इंसान H67

सूरज जो सम्मान दे, लौ को अपनी मान।
हो विभोर मन भाव सब, जीवन हो वरदान H66

नहीं प्रगति हासिल हमें, राहें जो आसान।
करती है कठिनाइयाँ, हर विकास गतिमान H65

जो तेरे अधिकार में, दाता करदे दान।
तेरी हद से है परे, विधि का सदा विधान H64

मन की पहुँच असीम है, ज्ञान है शक्तिवान।
कायनात को खींच ले, सपनों में हो जान H63

पथ को रौशन कर सके, गुरु ज्ञान की ज्योत
पर मंजिल की प्राप्ति को, खुद ही चलना होत H62

आज के मिथ्या वचन, करे हमें मजबूर।
बने पिरामिड झूठ के, अपने भागे दूर H61

बुद्धि की खिड़की खुली, जो रखते श्रीमान।
नई निराली सोच को, रस्ता दे भगवान H60

रामानंद मिले जिसे, कबिरा वो हो जाय।
अब अविनाशी रूप ही, दोहा बने सुहाय H59

भेद नही है प्राण में, जीवों में दिखलाय।
काट किसी की देह को, कैसे तू सुख पाय H58

तन मन बुद्धि से बँधे , रिश्ते बने अनेक।
परम आत्मा से जुड़े, बिरला कोई एेक H57

अन्तरमन को जो सुने, बढे क़दम के साथ।
नतमस्तक सदबुद्धि हो, लगे सफलता हाथ H56

क्षमा वीरस्य भूषणम् , क्षमा वीर की शान।
पर्यूषण के पर्व पे, करिये क्षमा निधान H55

घर भर खुशियाँ कर गये, आंगन आप पधार।
ऋद्धि सिद्धि द्वारे खड़ी, आदर पालनहार H54

मालिक वही भविष्य का, सपने बुने हजार।
रहे इरादे ठोस तो, जय हो बारम्बार H53

नव जनम से बदलेंगे, भाषा देश समाज।
सोचे सदा अनंत में, करम करें जो आज H52

रख के सोच नियंत्रण में, व्यक्ति बने विशेष।
बुद्धि बिना लगाम की, बचे न कुछ भी शेष H51

खुश करे कारण अगर, नई नही यह बात।
बिन कारण हम खुश रहें, उत्तम मानव जात H50

दो और दो पांच बने, मिलकर कर लें काम।
आपस में झगडे अगर, लग जायेंगें दाम H49

रहे चपल जो सोच में, रखते चित्त सचेत।
वाणी पर अंकुश रखे, तो फल ईश्वर देत H48
Talk slowly but think quickly.

चले सत्य के मार्ग पे, सतगुरु वो बन जाय।
सतगुरु के जो साथ है, भव से वो तर जाय H47

तज मत अपने काज को, जारी रहे प्रयास।
चले निरन्तर जो अगर, रहे विजय की आस H46

एक झूठ से आपके, लगे सत्य पर प्रश्न।
साथ न छोड़े सत्य का, जीवन होगा जश्न H45

हीरा उसे न बेचिए, जो ना समझे मोल।
छोडो उनका साथ जो, बुद्धि सके न तोल H44

कहती देह पुकार के, समय मुझे दो आज।
जब आयेंगे रोग तो, आऊँ तेरे काज H43

खुली जगत में आँख जब, मिला कोष अनमोल।
रहो समर्पित कर्म में, लोग बजायें ढोल H42

मिल जाये पारस तुझे, पल में कनक बनाय।
सतगुरु ऐसा खोजिये, पारस तू बन जाय H41

ज्ञानी की संगत रहे , मिले सदा ही सीख।
जो संगत हो मूढ़ की, भीख मिले ना सीख H40

शब्दों की महिमा बड़ी, सुर लय से संगीत।
सुर बिगड़े जो आपके, हर ले सबकी प्रीत H39

कथा सफलता की सदा , देती है उपदेश।
नही विफलता कम कभी, इसमें भी सन्देश H38

माखन दिखे न दूध में, बूँद में हरेक छुपाय।
ऐसे ही हरि नाम भी, कण कण रहत समाय H37

अज्ञानी के शब्द से, हुआ सत्य का नाश।
ऐसे वचनों पर कभी, करें नही विश्वास H36

अर्थ मिले जब मौन का, पाये शब्द विराम।
लोक वासना से निकल, मन भाये श्री राम H35

कड़वे अनुभव ही मिले, फिसले अगर जुबान।
सीमाओं में शब्द रहे, बनी रहे मुस्कान H34

जो सेवन तुलसी करे, तन पाये आराम।
शब्द सुधा तुलसी बने, मन धारे श्री राम H33

पानी है जो सफलता,, करिये सतत प्रयास।
चींटी सा चलते रहे,, कभी न छोड़े आस H32

विजय रथ बढ़ता रहे, युद्ध कर रहे आप।
लड़ना अपने आप से, दुश्मन भी हैं आप H-31

पानी है जो सफलता, छोड़ बहाने यार।
कर्म और आलस्य में, कभी न होगा प्यार H-30

पढ़ना हमको इस तरह, जी ले अनंत काल।
जीना भी ऐसे हमे , पल हो मृत्यु अकाल H-29

हरपल अमृत मान के, करिये शब्द प्रयोग।
मौन से बेहतर तभी, शब्दों का उपयोग H-28

कर कर पूजा पत्थर की, हुआ जगत पाषाण।।
प्रेम दिखाये कंकर से, ले जीवन के प्राण H-27

माफ़ी की है महत्ता, ग़लतियों के बाद।
जो तोड़ा विश्वास तो, माफ़ी रहे न याद H-26

जाति धर्म रुप और रंग, अलग अलग पहचान
अनेकता मे भी एकता, ऐसा हिंदुस्तान H-25

सुख आनंद जो चाहिये, रखिये सरल स्वभाव।
सादा जीवन जो जिये, देते है सब भाव H-24

मन वचन और कर्म में, न्याय सत्य का वास।
बढे साख और मित्रता, सकल जैन विश्वास H-23

मन वचन और कर्म में, न्याय सत्य का वास।
बढे साख और मित्रता, रोटेरी विश्वास H-22

लगे धरा को प्यास जब, नभ अमृत बरसाय।
तकलीफों के नाम पे, तू क्यों आड़े आय H-21

पता उसको पूछिये, जो मंज़िल हो आय।
अज्ञानी को पूछ के, मोक्ष कभी न पाय H-20

जब भी देखूँ पेड़ को, मन माने आभार।
वृक्षारोपण जो करुँ, उतरेगा ये भार H-19

मिथ्या फैली इस तरहा, जैसे मायाजाल।
चेहरों पर चेहरे लगे, सच का पड़ा अकाल H-18

गुस्सा कभी न कीजिये होगा खाक तमाम।
कारण से घातक सदा रहे क्रोध-परिणाम H-17

पड़े पड़े लग जाएगा लोहे में भी जंग।
योग जो न किया तो लकड़ी होगी संग H-16

दुखी समझ मुझको सभी हमदर्दी दिखलाय।
मगर ख़ुशी उनके कभी गले उतर ना पाय H-15

बुद्धि तेरी कहा गई, कहा खो गया ज्ञान।
वस्तु तो मन में रखे, हरे जीव के प्राण H-14

निंदा करने से पहले, सोचे बारम्बार।
करनी हो जो प्रसंशा मत कतराना यार H-13

धैर्य निम्बोडि लगे, कड़वा सा अहसास।
साध्य जो कर ले इसे, जीवन घुले मिठास H-12

अंधकार से जो हमे, हाथ पकड़ ले जाय।
चाहे जीव अजीव हो, वही गुरु कहलाय H-11

भरोसा जो मन मे हो, हो खुदा भी साथ।
घाटी का क्या कहना, चढ़ना भी आसान H-10

सम्मानित होते नही, आप ज्ञान गुण जान।
व्यव्हारिकता ज्ञान की, दिलवाती सम्मान H-9

कौन रोक दुःख को सके, किसकी रहे कमान।
सहना हम जो सीख ले, जीवन हो आसान H-8

जो बाण हो तरकस मे, साहस का हो भान।
मुश्किले सब मिटे, हो अगर रामबाण H-7

भविष्य के गर्भ में, छिपा न जाने कोय।
रखिये तीर संभाल के, कभी जरूरत होय H-6

वादों से होता नहीं, कर्मो का संचार।
पानी है जो सफलता, करले काम हज़ार H-5

पाना है तुमको अगर, प्यार यश सम्मान।
दोनो हाथ लुटाइये, प्रेम अपना जान H-4

नही रखा तुमने अगर, लालच से मन दूर।
अवसर जायेंगे सदा, चिड़िया जैसे फूर H-3

असली नेता है वही, ले जो गलती मान।
और सफलता के लिएे, दे सबको सम्मान H-2

पहला क़दम बढ़ाइये, चलना मील हज़ार।
रुकना कभी न राह मे, जय जय बारंबार ॥१॥

Hemant Lodha

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